चीन ने छोड़ी सख़्ती, उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति के रूप में चुपचाप दी मान्यता

चीन ने छोड़ी सख़्ती, उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति के रूप में चुपचाप दी मान्यता

नई दिल्ली/बीजिंग | 3 अक्टूबर 2025

परमाणु कूटनीति की दुनिया में बड़ा मोड़ आया है। एक समय उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कड़ा रुख़ अपनाने वाला चीन अब अपने पुराने तेवर छोड़ता दिख रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन की सितंबर 2025 की ताज़ा बैठक में इस मुद्दे पर कोई कड़ा या स्पष्ट बयान नहीं दिया गया। यह संकेत है कि बीजिंग अब उत्तर कोरिया को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के तौर पर “चुपचाप स्वीकार” कर चुका है।

बदले समीकरण, बदली रणनीति

2023 के मध्य से ही चीन ने परमाणु निरस्त्रीकरण पर अपनी मुखरता कम कर दी थी। उधर, उत्तर कोरिया और रूस के बीच लगातार गहराते रिश्तों ने बीजिंग के प्रभाव को कमजोर किया। नतीजतन, चीन को नई भू-राजनीतिक सच्चाइयों के अनुसार खुद को ढालना पड़ा और उसने उत्तर कोरिया की वास्तविकता को बिना सार्वजनिक घोषणा के स्वीकार कर लिया।

परमाणु सफ़र: 1993 से अब तक

उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम दशकों से दुनिया के लिए चिंता का विषय रहा है।

  • 1993: NPT (परमाणु अप्रसार संधि) से अलगाव
  • 2006-2017: छह परमाणु परीक्षण, जिनमें ICBM (इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल) भी शामिल
  • 2012: संविधान में खुद को “परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र” घोषित
  • 2022: नया क़ानून, जिसमें परमाणु हथियारों की नीतियों को ‘अपरिवर्तनीय’ बताया
  • 2023: संविधान संशोधन कर परमाणु नीति को “स्थायी और अंतिम” दर्जा

अमेरिका से बात, फिर ठप

2018 में अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन की ऐतिहासिक मुलाक़ातों ने उम्मीद जगाई थी। सिंगापुर और पनमुंजोम घोषणाओं में कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु मुक्त करने का वादा किया गया। लेकिन 2019 की हनोई बैठक के बाद से यह संवाद ठंडे बस्ते में चला गया। तब से उत्तर कोरिया ने किसी भी निरस्त्रीकरण प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया है।

अब कोई संशय नहीं बचा

किम जोंग उन ने स्पष्ट कर दिया है कि अब उत्तर कोरिया किसी भी कीमत पर अपने परमाणु हथियार नहीं छोड़ेगा। 2023 का संविधान संशोधन इस बात की पुष्टि करता है कि परमाणु नीति अब उत्तर कोरिया की स्थायी राष्ट्रीय नीति बन चुकी है, जिसे “किसी भी स्थिति में बदला नहीं जा सकता।”


निष्कर्ष:
उत्तर कोरिया अब सिर्फ एक संभावित परमाणु शक्ति नहीं, बल्कि दुनिया द्वारा अनकही मान्यता प्राप्त एक वास्तविक परमाणु राष्ट्र बन चुका है — और चीन का बदला रुख़ इसकी पुष्टि करता है। यह बदलता समीकरण सिर्फ एशिया ही नहीं, पूरी वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक नई चुनौती बनकर उभरा है।


आगे क्या?
क्या अमेरिका और उसके सहयोगी देश इस नई हकीकत को स्वीकार करेंगे या फिर कूटनीति की नई रणनीति अपनाएंगे? और क्या चीन की चुप्पी उसकी दीर्घकालिक विदेश नीति का संकेत है या रणनीतिक मजबूरी?

जवाब आने वाले महीनों में सामने होंगे…

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