पटना, 4 अक्टूबर 2025:
बिहार में चुनावी बिगुल कभी भी बज सकता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार, निर्वाचन आयुक्त डॉ. सुखबीर सिंह संधू और डॉ. विवेक जोशी की अगुवाई में चुनाव आयोग की हाई-लेवल टीम पटना पहुंच चुकी है, और आज से दो दिवसीय समीक्षा बैठक का आग़ाज़ हो गया है। माना जा रहा है कि आयोग की यह समीक्षा 5 अक्टूबर को समाप्त होने के बाद, 6 अक्टूबर या उसके बाद कभी भी बिहार विधानसभा चुनावों की तारीखों का औपचारिक एलान किया जा सकता है।
राजनीतिक दलों से संवाद, चुनावी तैयारियों का जायजा
आज का दिन पूरी तरह चुनावी समीक्षाओं और रणनीतिक बैठकों के नाम रहा। आयोग की टीम ने दिन की शुरुआत राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से मुलाकात और सुझावों के संग्रह के साथ की। इसके बाद आयोग के सदस्य मंडल आयुक्तों, पुलिस महानिरीक्षकों, जिला निर्वाचन पदाधिकारियों और एसपी/एसएसपी के साथ बैठक कर रहे हैं, जहां चुनाव की प्रशासनिक तैयारियों और सुरक्षा इंतजामों की बारीकी से समीक्षा की जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, 5 अक्टूबर की शाम तक आयोग एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकता है, जिसमें बिहार चुनाव को लेकर अहम एलान किया जा सकता है।
बैठक से बाहर किए गए तीन बड़े नेता, उठे सवाल
राजनीतिक हलकों में उस समय हलचल मच गई जब सामने आया कि पटना में हो रही इस महत्वपूर्ण बैठक में महज 12 मान्यता प्राप्त दलों को ही आमंत्रित किया गया है। बैठक में शामिल दलों में भाजपा, जदयू, राजद, कांग्रेस, वाम दल जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
लेकिन इस सूची से तीन प्रमुख क्षेत्रीय नेताओं की पार्टियों को बाहर रखा गया, जो अब चुनाव आयोग के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं:
- जीतन राम मांझी की पार्टी हम (HAM)
- मुकेश सहनी की वीआईपी (VIP)
- उपेंद्र कुशवाहा की रालोसप (RLM)
इन दलों को बैठक में आमंत्रित न किए जाने को बड़ा राजनीतिक संकेत माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटनाक्रम आगामी चुनाव में राजनीतिक हैसियत के नए संकेत दे सकता है।
अब इंतजार चुनाव तारीखों के एलान का
अब सभी की नजरें 6 अक्टूबर पर टिकी हैं, जब चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए आधिकारिक चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जा सकता है। इसके साथ ही बिहार में चुनावी शंखनाद हो जाएगा, और सियासी गलियारों में हलचल और तेज़ हो जाएगी।
बिहार चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है — और हर दल अब अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुट गया है। लेकिन मांझी, सहनी और कुशवाहा जैसे नेताओं को बैठक से बाहर रखे जाने की गूंज आने वाले दिनों में सियासी बहस को और गर्म कर सकती है।
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