प्रकाश का पर्व, जो इतिहास, आस्था और परंपरा की लौ से जगमगाता है, उसका सीधा संबंध भगवान श्रीराम की 21 दिवसीय अयोध्या वापसी से जुड़ा है। दशहरे पर रावण का अंत होता है, लेकिन दिवाली उस पल का उत्सव है जब अयोध्या ने अपने प्रिय राजा का स्वागत किया – दीपों की जगमगाहट के साथ।
दशहरा: रावण पर राम की विजय
दशहरा या विजयदशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक पर्व है।
इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था और अपनी पत्नी सीता को उसके बंदीगृह से मुक्त कराया। रावण का अंत केवल एक युद्ध का नहीं, बल्कि अहंकार और अधर्म के अंत का प्रतीक है।
पुष्पक विमान से वापसी की शुरुआत
रावण-वध के बाद श्रीराम, सीता और लक्ष्मण ने पुष्पक विमान से अपनी जन्मभूमि अयोध्या के लिए प्रस्थान किया। लंका से अयोध्या तक की यह यात्रा तत्कालीन समय की भौगोलिक और सामाजिक परिस्थितियों में करीब 21 दिनों में पूरी हुई।
अयोध्या का दीपों से स्वागत – दिवाली की शुरुआत
भगवान राम की वापसी की ख़बर सुनते ही अयोध्या नगरी हर्ष और उल्लास से भर उठी।
लोगों ने दीयों से नगर को रोशन किया, मिठाइयाँ बांटीं और उल्लास मनाया।
यह रात कार्तिक महीने की अमावस्या थी, जब चंद्रमा नहीं होता – और तब दीयों की रौशनी ने पूरे अंधकार को हराया।
यही दिन आगे चलकर “दिवाली” के रूप में प्रसिद्ध हुआ – दीयों का पर्व, प्रकाश का उत्सव, और राम के स्वागत की स्मृति।
इतिहास से परंपरा तक: क्यों दिवाली दशहरे के 21 दिन बाद?
- दशहरा: रावण वध (बुराई पर अच्छाई की जीत)
- 21 दिन की यात्रा: लंका से अयोध्या की ओर श्रीराम का आगमन
- दिवाली (कार्तिक अमावस्या): अयोध्यावासियों द्वारा दीपों से श्रीराम का स्वागत
यही कारण है कि दशहरे के 20-21 दिन बाद, कार्तिक अमावस्या की रात को दिवाली का पर्व मनाया जाता है।
दिवाली सिर्फ रौशनी नहीं, भावनाओं की गहराई है
यह पर्व केवल दीप जलाने या मिठाइयाँ बाँटने का नहीं है, बल्कि यह धर्म, विजय, और घर वापसी की भावना को समर्पित है।
दिवाली हर साल हमें याद दिलाती है कि अंधकार चाहे जितना भी गहरा हो, एक दीया भी उम्मीद की रौशनी फैला सकता है।
2025 में दिवाली 21 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
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