नवरात्रि का पावन पर्व इस वर्ष भी पूरे देश में धूमधाम से संपन्न हुआ। नौ दिनों तक घर-घर और पंडालों में माँ दुर्गा की आराधना हुई। दशहरे के दिन यानी विजयादशमी पर माँ दुर्गा को विदाई दी गई और शाम होते ही रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के विशाल पुतलों का दहन कर अच्छाई की जीत का संदेश दिया गया।
माँ दुर्गा पूजा का अंतिम दिन
विजयादशमी का दिन दुर्गा पूजा का समापन माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। बंगाल, बिहार, असम और झारखंड में विशेष रूप से दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए भव्य शोभायात्राएँ निकाली गईं।
दिल्ली के कालीबाड़ी मंदिर में पूजा करने पहुँचीं श्रद्धालु सुमित्रा देवी ने कहा – “माँ पूरे साल हमें शक्ति देती हैं। विसर्जन के समय आँसू आ जाते हैं, लेकिन विश्वास है कि अगले वर्ष फिर माँ हमारे घर और दिलों में विराजेंगी।”
कोलकाता के बागबाज़ार पंडाल में महिलाएँ ‘सिंदूर खेला’ की परंपरा निभाती हुई दिखाई दीं। सुहागिन महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर माँ दुर्गा से अपने परिवार की रक्षा और सौभाग्य की कामना करती रहीं।
रावण दहन का भव्य आयोजन
देश के दूसरे हिस्सों में रामायण की महान घटना को याद किया गया। दिल्ली के रामलीला मैदान में हजारों लोग रावण दहन देखने के लिए जुटे। शाम को जैसे ही पुतलों में आग लगी, आसमान जय श्रीराम के नारों से गूंज उठा। पटाखों की गड़गड़ाहट और आतिशबाज़ी से माहौल रोमांचक हो गया।
वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर आयोजित दशहरा महोत्सव में शामिल राजेश कुमार ने कहा – “रावण दहन हमें याद दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में धर्म और सत्य की ही विजय होती है।”
पटना, लखनऊ और जयपुर में भी रावण दहन के भव्य आयोजन हुए। परिवार के साथ आयोजन देखने पहुँचे अनुज श्रीवास्तव ने बताया – “बच्चों को यह परंपरा दिखाना बहुत जरूरी है। वे समझें कि यह सिर्फ उत्सव नहीं बल्कि संस्कृति और जीवन के मूल्यों की शिक्षा है।”
विजयादशमी का संदेश
माँ दुर्गा का महिषासुर वध और श्रीराम का रावण वध – दोनों ही कथाएँ हमें यही सिखाती हैं कि अहंकार और अन्याय का नाश निश्चित है। विजयादशमी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितनी हजारों वर्ष पहले थी। यह पर्व बताता है कि जब समाज एकजुट होकर धर्म और न्याय के लिए खड़ा होता है, तो बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसका अंत निश्चित है।
निष्कर्ष
इस प्रकार विजयादशमी का पर्व दो परंपराओं के संगम के रूप में सामने आता है – माँ दुर्गा की विदाई और रावण दहन। एक ओर माँ दुर्गा का विसर्जन भक्ति और भावुकता का वातावरण पैदा करता है, वहीं दूसरी ओर रावण दहन उत्साह और जोश भर देता है। दोनों ही परंपराएँ एक ही संदेश देती हैं –
“सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है, असत्य और अहंकार का अंत निश्चित है।”
Views: 59