झारखंड में किसानों की मांगें और छात्रों का विरोध प्रदर्शन, सामाजिक मुद्दे सुर्खियों में

झारखंड में किसानों की मांगें और छात्रों का विरोध प्रदर्शन, सामाजिक मुद्दे सुर्खियों में

झारखंड इन दिनों सामाजिक आंदोलनों की गूंज से भर गया है। किसान और छात्र अपने-अपने मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं, जिससे कृषि और रोजगार से जुड़े सवाल एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं।

किसानों की मांग: सिंचाई और धान खरीद में सुधार
गिरिडीह, पलामू और हजारीबाग जैसे जिलों के किसान बेहतर सिंचाई सुविधाओं की मांग को लेकर आवाज बुलंद कर रहे हैं। असमय और अनियमित मानसूनी बारिश के साथ-साथ भूजल स्तर में गिरावट ने इस साल फसलों को गहरा नुकसान पहुंचाया है। किसानों का कहना है कि पर्याप्त नहरों और आधुनिक जल प्रबंधन प्रणालियों के अभाव में उनकी फसलें असफल हो रही हैं।

धान की सरकारी खरीद में हो रही देरी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। किसान संगठनों का आरोप है कि समय पर धान की खरीद न होने से उन्हें मजबूरी में निजी व्यापारियों को औने-पौने दामों पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है। उन्होंने सरकार से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर समयबद्ध खरीद सुनिश्चित करने और दूरदराज गांवों में खरीद केंद्र खोलने की मांग की है।

छात्रों का विरोध: रोजगार और भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता
रांची में छात्र संगठनों और विश्वविद्यालयों के छात्रों ने रोजगार को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया है। उनका कहना है कि सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षाओं में अनियमितता और देरी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।

प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें:

  • भर्ती परीक्षाओं में पारदर्शिता और समयबद्ध प्रक्रिया।
  • सरकारी नौकरियों में अधिक अवसर।
  • युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम।

कई छात्रों का कहना है कि उच्च शिक्षा पूरी करने के बावजूद रोजगार के अवसर न मिल पाने के कारण उन्हें अन्य राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है।

सरकार का रुख
राज्य सरकार ने दोनों मुद्दों को स्वीकार किया है। अधिकारियों का कहना है कि सिंचाई तंत्र को मजबूत करने और धान खरीद प्रक्रिया को सरल बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। वहीं, रोजगार के मोर्चे पर सरकार ने भर्ती परीक्षाओं की पारदर्शिता सुनिश्चित करने और नए कौशल विकास कार्यक्रम लाने का आश्वासन दिया है।

हालांकि, किसान और छात्र संगठन सतर्क हैं और उनका कहना है कि जब तक ठोस कदम नहीं उठाए जाते, उनका आंदोलन जारी रहेगा।


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